


आरंग के प्रतिष्ठित श्रीयांश हॉस्पिटल में गर्भवती महिला तुलेश्वरी कन्नौजे की मौत में कई सवाल खड़े हो रहे है
गर्भवती महिला की मौत गब्बर इस बैक फिल्म की तर्ज पर पल्ला झाड़ने लगे थे अस्पताल प्रबंधन
रिपोर्टर मयंक गुप्ता
रायपुर आरंग (छत्तीसगढ़): कहते हैं अस्पताल जीवन देने का केंद्र होता है, लेकिन आरंग का श्रीयांश हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर क्या मौतों का अड्डा बन गया है? इस सवाल का जवाब तलाश रही है वो मासूम नवजात बच्ची, जिसकी आंखें मां की ममता देखने से पहले ही सूनी हो गईं। और वह मां – तुलेश्वरी कन्नौजे, जिसने पहली बार मातृत्व का अनुभव किया और वहीं उसे मौत की नींद सुला दिया गया।
हॉस्पिटल संचालक पी एल देवांगन सफाई देते हुए
घटना दिनांक 14 रात्रि को आरंग ब्लॉक के बोरिद गांव की है। 22 वर्षीय तुलेश्वरी कन्नौजे को प्रसव पीड़ा होने पर परिजनों ने श्रीयांश हॉस्पिटल में भर्ती कराया। यह उसका पहला प्रसव था। बच्ची को जन्म तो मिल गया, लेकिन मां की जान चली गई। परिजनों के अनुसार, तुलेश्वरी डिलीवरी के बाद भी असहनीय पीड़ा में तड़पती रही, मगर डॉक्टरों और हॉस्पिटल स्टाफ ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई।
लापरवाही या सुनियोजित मौत?
परिजनों का आरोप है कि तुलेश्वरी की हालत बिगड़ने के बाद हॉस्पिटल प्रशासन ने उन्हें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी। अचानक महिला की मृत्यु की सूचना मिली, वो भी तब, जब उसे चोरी-छिपे एक प्राइवेट एम्बुलेंस में रायपुर ले जाने की बात कही गई।
मृतक की मां ने बताये आप बीती
सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि मृत महिला को परिजनों को बताए बिना ही स्ट्रेचर पर लिटाकर बाहर ले जाया जा रहा था। जब मृतका की मां ने सवाल किया तो हॉस्पिटल स्टाफ ने बदसलूकी की, धक्का देकर बाहर निकाल दिया।
परिजन स्तब्ध थे – उन्हें उनकी बेटी की मौत के पीछे की सच्चाई नहीं बताई गई। एमएलसी या पुलिस रिपोर्ट का कोई जिक्र नहीं, कोई चिकित्सकीय विवरण नहीं, कोई संवेदना नहीं।
दलालों की भूमिका पर गहराया संदेह
स्थानीय लोगों और परिजनों ने शंका जताई है कि इस अस्पताल में डिलीवरी केसों के जरिए मौत का सौदा किया जा रहा है, जिसमें कुछ मेडिकल दलालों की मिलीभगत भी है। “यह पहला मामला नहीं है, पहले भी यहां इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं,” गांव के कुछ लोगों ने बताया।
जन्म के साथ मौत का दस्तावेज
तुलेश्वरी की नवजात बेटी को जन्म के साथ ही एक ऐसा कलंक मिला, जिसे शायद ज़िंदगी भर वह ना भूल सके। उसने मां को देखा ही नहीं, उसकी मां की मौत पर उठ रहे सवालों का जवाब शायद उसे भी कभी ना मिले।
परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ पूरी तरह लापरवाह थे। तुलेश्वरी की हालत लगातार बिगड़ती रही, मगर कोई सीनियर डॉक्टर देखने नहीं आया। जब मौत हो गई, तो अस्पताल ने बिना जिम्मेदारी लिए, लाश को चुपचाप एम्बुलेंस में रखवाकर रायपुर रेफर करने का नाटक किया।
मृतक तुलेश्वरी कन्नौजे के पति ने बताए
प्रशासन की चुप्पी – साजिश या सहमति?
अब सवाल उठता है कि प्रशासन इस पर चुप क्यों है? आरंग स्वास्थ्य विभाग और जिला कलेक्टर ने इस गंभीर लापरवाही पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या यह अस्पताल जन-स्वास्थ्य के नाम पर मौत का व्यापार चला रहा है?
परिजनों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की न्यायिक जांच हो, एफआईआर दर्ज की जाए और हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द किया जाए।
कई ऐसे ही मामले दबा दिए गए?
स्थानीय लोगों का कहना है कि श्रीयांश हॉस्पिटल में पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं हुई हैं। कुछ महिलाओं की प्रसव के बाद हालत गंभीर हो गई, तो किसी की मौत हुई। लेकिन हर बार मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
मौत के बाद न कोई पोस्टमार्टम, न FIR, न मेडिकल रिपोर्ट, न ही मरीज के इलाज की जानकारी परिजनों को दी जाती है। सवाल ये उठता है कि क्या यह अस्पताल मानवता की हत्या कर रहा है?
मासूम का भविष्य अंधकारमय
अब सवाल उस बच्ची का है, जिसकी आंखें खुलीं तो मां की लाश देखी। पिता पहले ही बेरोजगार हैं, और अब इस मासूम का जीवन प्रशासन और समाज की दया पर निर्भर है।
क्या सरकार, महिला बाल विकास विभाग या कोई समाजसेवी संगठन इस बच्ची के लिए आगे आएगा?
क्या कहते हैं कानून और स्वास्थ्य नीति?
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य स्वास्थ्य विभाग की नीतियों के अनुसार, प्रसव के दौरान किसी महिला की मौत की स्थिति में एमएलसी, पोस्टमार्टम, रिपोर्टिंग अनिवार्य है। साथ ही, मरीज को उचित रेफरल प्रक्रिया से ही अन्यत्र भेजा जा सकता है। मगर श्रीयांश हॉस्पिटल ने इन सभी मानकों की खुलेआम अवहेलना की।
जनता में आक्रोश – आंदोलन की चेतावनी
आरंग क्षेत्र में इस घटना के बाद ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों में भारी आक्रोश है। स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों में भी आक्रोश है!
एक महिला की जान गई है – पर सवाल सिर्फ तुलेश्वरी की मौत का नहीं, बल्कि उन सभी महिलाओं की सुरक्षा का है, जो इलाज के नाम पर मौत को गले लगाने मजबूर हैं।
क्या मातृत्व अब सुरक्षित नहीं रहा? क्या हम ऐसे सिस्टम के सामने मौन रहेंगे, जो जीवन देने की जगह लाशें सौंपता है?

