वाह रे शासन तेरा खेल..! निजी अस्पतालों में हो रही मौतें कौन जायेगा जेल...?



कम पढ़े लिखे लोगों के नीचे काम कर रहे है पढ़े लिखे डॉक्टर
रिपोर्टर मयंक गुप्ता
रायपुर / छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकारी चिकित्सकों के निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस करने पर सख्त रोक लगा दी है। स्वास्थ्य विभाग ने इस संबंध में नए निर्देश जारी किए हैं, जिनके अनुसार कार्यावधि के दौरान डॉक्टरों द्वारा निजी प्रैक्टिस करने पर कार्रवाई की जाएगी।
स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव चंदन कुमार ने प्रदेशभर में आदेश जारी करते हुए निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं। यह आदेश सरकारी अस्पतालों की सेवाओं को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से लिया गया है, जिससे सरकारी कामकाज में होने वाली अव्यवस्थाओं को दूर किया जा सके।
झोलाछाप डॉक्टरों के पास है हर बीमारी का इलाज, लोगों की जान से कर रहे हैं खिलवाड़…?
गली-मोहल्लों गांव और शहर की पाश कालोनियों में बुखार उल्टी-दस्त मलेरिया दाद-खाज और खुजली के अलावा सांस के गंभीर मरीजों का इलाज झोलाछाप डॉक्टर कर रहे हैं। अपनी जेब गर्म करने के लिऐ झोलाछाप डॉक्टर द्वारा भोले-भाले लोगों के जान से खिलवाड़ जैसा घिनौना कृत्य कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों एवं कुछ स्वास्थ्यकर्मियों की मिलीभगत से अनुभव विहिन झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा आज निजी अस्पताल का भी संचालक बने बैठे हैं।
मलेरिया, ब्लड शुगर, टायफायड, प्रेगनेंसी और ब्लड प्रेशर की जांच करने में भी झोलाछाप डॉक्टर पीछे नहीं रहते। जबकि इनके पास इन बीमारियों के इलाज के लिए संसाधन भी उपलब्ध नहीं रहता। साथ ही ये बीमारियां बहुत ही खतरनाक एवम भयावह भी हैं। जरा सी लापरवाही बरतने पर मरीज का जान जा सकती है और ऐसा लगातार हमको देखने मिल ही रहा है। विगत दिनों एक छः वर्षीय बच्ची को अपनी इहलीला समाप्त करनी पड़ी इसका सीधा और साफ नतीजा है कि,यदि उनके पास कोई योग्य चिकित्सक नही थे तो इनको एडमिट नही किया जाना था शायद बच्ची की जान बच सकती थी।
झोलाछाप डॉक्टर की दुकान पर सुबह-शाम मरीजों की भीड़ लगी रहती है। परामर्श के साथ खुद ही दवा देते रहते हैं। अपंजीकृत क्लीनिक के साथ बिना लाइसेंस के दवाएं भी बेच रहे हैं। कई बार मरीजों की हालत बिगड़ने पर उसे त्वरित सरकारी अस्पताल तक भेजने का काम भी किया करते हैं।
गांवों में फेरी लगाकर करते है लोगो का उपचार-
जिले के समीपस्थ वनग्रामों में इन झोलाछाप डाक्टरों द्वारा अपने घरों में क्लिनिक तो खोलकर रखे ही है। साथ ही इसके अलावा ये झोलछाप डॉक्टर गांवों में बैग लटकाकर फेरी करते हुए भी मरीजों का उपचार करते नजर आते है। झोलाछाप डॉक्टर मरीजों की अपनी बातों में फंसाकर शत प्रतिशत इलाज की गारंटी का भरोसा दिलाते हुए मनमानी फीस वसूलते है। इनका इलाज मरीजों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यह डॉक्टर अपने पास से मरीजों को एन्टीबायोटिक दवाईयां देने के साथ ही बकायदा पर्ची पर भी दवाई लिखकर मरीजों को बाजार से खरीदने को कहते है।
मेडिकल स्टोर्स संचालक संग भी गठबंधन
मेडिलक स्टोर्स संचालक भी झोलाछाप डॉक्टरों की पर्ची पर लिखी दवाएं मरीजों को दे देते है। इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से ग्रामीण क्षेत्रों में दिनों दिन झोलाछाप डाक्टरों संख्या भी बढ़ती ही जा रही है।
वसूलते है मनमानी फीस-
झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा इंजेक्शन एवं बॉटल भी मरीजों को लगाई जाती है। दर्द निवारक टेबलेट के अलावा एन्टीबायोटिक दवाइयों एवं इंजेक्शनों का इन डॉक्टरों के पास भरपूर स्टॉक होता है। जो शहर के मेडिकल दुकानदार इन्हें भारी कमीशन लेते हुए उपलब्ध कराते है। इन दवाओं की कीमत मरीजों से मनमानी वसूलते है। ऐसा करके झोलाछाप डाक्टरों द्वारा लोगों से मोटी रकम वसूलने के साथ ही उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया भी किया जा रहा है।
एक बॅाटल लगाने के लेते है लगभग 300 रुपए-
झोलाछाप डाक्टरों द्वारा मरीजों को एक बॉटल लगाने के 300 रुपए तक लिए जाते है। अपने पर्ची पर एन्टीबायोटिक गोलियां भी लिखते है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, इन डॉक्टरो द्वारा किस तरह की लूट मचा रखी है। अगर बॉटल मरीज लाता है। बॉटल लगाने के 50 और इंजेक्शन लगवाने के 20 रुपए लिए जाते है।
गांव-गांव खोल रखे है क्लिनिक-
जिले से सटे अधिकांश गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा संचालित क्लिनिक भी दिखाई देते है। जहां मरीजों के लिए एक पंलग एवं अंटेडर एक लकड़ी की बैंच की व्यवस्था होती है। इन क्लिनिकों में मरीजों की भीड़ लगी रहती है। इस संबंध में कुछ ग्रामीणों से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि, गांव के उप स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टर नहीं होने से उन्हें मजबूरी में इन्ही डाक्टरों से उपचार कराना पड़ता है।

