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महासमुंद के बरबसपुर रेत घाट में पारागांव के पूर्व उप सरपंच की मौत हत्या या हादसा...?

 

कलेक्टर द्वारा नोटिस जारी के 24 घंटे के भीतर अवैध रेत घाट में हुआ बड़ा हादसा

रिपोर्टर मयंक गुप्ता
महासमुंद। जिले के बरबसपुर रेतघाट इलाके में आज संतु पाल नामक एक व्यक्ति की हाइवा ट्रक में दबने से मौत हो गई है। ऐसा कहा जा रहा कि,मृतक की मौत तो हुई है पर कैसे इसे कह पाना अभी जल्दबाजी होगा।
बताया जा रहा है कि, आज सुबह अवैध रेत उत्खनन के दौरान यह हादसा हुआ है। जिस रेत घाट से रेत निकाला जा रहा है वह पूरी तरह से अवैध है। मृतक संतुपाल को पारागांव आरंग रायपुर निवासी होना बताया जा रहा है। संतु पाल पूर्व उपसरपंच पारा गांव रह चुके है। घटना बरबसपुर क्षेत्र में हुआ है लेकिन सीमा विवाद का मामला बताते हुए मामले को महासमुंद जिले से हटाकर कर रायपुर स्थानांतरित किया जा रहा है। इसके पीछे गहरी राजनीति होना माना जा रहा है।
गौरतलब है कि, एक दिन पूर्व ही महासमुंद जिला कलेक्टर विनय कुमार लंगेह ने बरबसपुर सहित 11 सरपंचों और पंचों को नोटिस थमाया था और पंचायत अधिनियम के तहत संपूर्ण जवाबदेही सरपंचों की मानी गई है। नोटिस को 24 घंटा बीता नहीं और अवैध रूप से संचालित हो रहे रेत घाट पर संतु पाल की मौत हो गई है।
महासमुंद जिले सहित पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश में वर्षों से अवैध रेत का गोरखधंधा अपने चरम सीमा पर पहुंच चुका है। रेत माफिया महानदी का सीना छलनी कर करोड़ों की काली कमाई कर रहे हैं और शासन प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। इस गंभीर स्थिति पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और प्रशासन को कड़ी फटकार भी लगाई है। बावजूद इसके माफियाओं के हौसले इतने बुलंद है कि उनको ना तो शासन का डर है और ना प्रशासन का भय है। माननीय न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में पूछा था कि, जब माइनिंग एक्ट में कठोर दंड का प्रावधान है तो अवैध खनन में लिप्त लोगों पर सख्त कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? आखिर कब तक सिर्फ जुर्माना लगाकर रेत माफियाओं को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

बता दें कि, आज से कुछ सप्ताह पूर्व महासमुंद जिले के गढसिवनी में अवैध रेत का उत्खनन किया जा रहा था जहां रेत माफियाओं ने ग्रामीणों को आपस में लड़वा कर पूरे गांव में अशांति फैला दी थी। बरबसपुर क्षेत्र के जिस इलाके में आज संतु पाल की मौत हुई है यह अवैध रेत खदान का क्षेत्र है वह व्यक्ति है जो से रेत का अवैध गोरखधंधा करते आ रहे है । रेत माफिया महासमुंद जिले में कई सालों से सक्रिय है, जिसकी पहुंच यहां के राजनेताओं और उच्च अधिकारियों से बड़ा गहरा संबंध रहा है। यह रेत माफिया किसी संघ का अध्यक्ष भी बताया जा रहा है जिसने इस संघ की आड़ में राजधानी में भी अपनी गहरी पकड़ बना रखी है।

माइनिंग एक्ट का पालन आखिर क्यों नहीं हो पा रहा ? 

हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है कि, अवैध रेत खनन की समस्या तब तक खत्म नहीं होगी, जब तक दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती। केवल आर्थिक दंड लगाकर उन्हें छोड़ना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि, अगर अवैध खनन को रोकना है, तो दोषियों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई करनी होगी।

राज्य सरकार की कार्रवाई सिर्फ कागजी 

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि, चार सदस्यीय टीम गठित की गई है, जो अन्य राज्यों का दौरा कर रेत खनन रोकने के उपायों पर रिपोर्ट तैयार करेगी।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस पर गहरी नाराजगी जताते हुए कहा कि, सिर्फ जांच कमेटी बनाने और रिपोर्ट तैयार करने से अवैध खनन नहीं रुकेगा। जब तक प्रशासनिक स्तर पर ठोस कदम और प्रभावी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक माफिया नदियों को बर्बाद करते रहेंगे।

अब FIR दर्ज करने का आदेश, रेत तस्करी को संज्ञेय अपराध घोषित करने की मांग 

सरकार ने अदालत को जानकारी दी कि, अब अवैध रेत खनन और परिवहन करने वालों पर FIR दर्ज की जा रही है तथा मोटर व्हीकल एक्ट के तहत भी कार्रवाई की जा रही है। हाईकोर्ट ने इस पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि रेत तस्करी को संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) घोषित किया जाना चाहिए, ताकि दोषियों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई हो सके और वे आसानी से बच न पाएं।

पूरे प्रदेश में सख्त निगरानी के आदेश – निर्दोषों की जान पर बन रही है 

हाईकोर्ट ने कहा कि अवैध रेत खनन के कारण कई निर्दोषों की जान जा चुकी है। रेत खनन मासूम की मौत की नदियां बनी है इस समस्या की भयावहता को दर्शाती है। अदालत ने प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दियें है कि, महानदी नदी सहित पूरे प्रदेश में अवैध खनन पर सख्ती से निगरानी रखी जाए और दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा न जाए।

22 अप्रैल तक ठोस कार्रवाई करना था नहीं तो सरकार पर गिरेगी गाज 

हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि, अब सिर्फ औपचारिक कार्रवाई से काम नहीं चलेगा। अगली सुनवाई 22 अप्रैल को थी । तब तक सरकार को ठोस रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। यदि सरकार और प्रशासन इस मामले में ढील बरतते हैं, तो अदालत कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी। क्या बीते 22 अप्रैल को शासन प्रशासन ने कोई रिपोर्ट प्रस्तुत की?

पारागांव के पूर्व उपसरपंच की हादसे में मौत का मृतक के परिवार को क्या न्याय मिलेगा या मामला कफ़न दफन हो जायेगा…?

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