छत्तीसगढ़

आज आयोलाल झूलेलाल जयंती जानिए उनके बारे में.

 

सिंधी लोग जल के देवता भगवान वरुण देव के अवतार भगवान झूलेलाल की पूजा करते हैं.

रिपोटर मयंक गुप्ता
महासमुंद / सिंधी समाज में भगवान झूलेलाल को जल और ज्योति के रूप में पूजा जाता है। चैत्र माह में नया वर्ष शुरू होता है। चैत्र से चेटी और चांद से चंड को मिलाकर चेटीचंड नाम इस उत्सव को दिया गया है।

भगवान झूलेलाल सिंधी समुदाय के प्रमुख देवता
यह दिन सिंधियों के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि उनका मानना है कि इसी दिन वरुण देव ने झूलेलाल की आड़ में सींधी समुदाय को एक राजा के दमनकारी अत्याचार से बचाने का कार्य किया था, जो हिंदू धर्म और सिंधी संस्कृति दोनों को खत्म करना चाहता था। . इसके अलावा, यह जल देवता की पूजा और आभार व्यक्त करने का दिन है।

देवता झूलेलाल कौन हैं?
झूलेलाल, एक पाकिस्तानी हिंदू संत, जिन्हें उडेरोलाल या ओडेरो लाल भी कहा जाता है। माना जाता है कि वे जल के हिंदू देवता, भगवान वरुण की अवतार थे। उनको मानने वाले लोग मुख्य रूप से सिंधी समुदाय में है। उन्हें दरयाई पंथ का संस्थापक माना जाता है। अधिकांश ग्रंथों में, भगवान झूलेलाल को लंबी सफेद दाढ़ी वाले एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है।

पर्व से जुड़ी कथा

सिंधी मान्यताओं को अनुसार, संवत् 1007 में सिंध देश ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक मुगल सम्राट ने हिंदू आदि धर्म के लोगों को जबरन इस्लाम स्वीकार करवाया था। उसके जुल्म लोगों पर बढ़ते ही गए तब एक दिन सभी महिला-पुरुष व बच्चे सिंधु नदी के पास इकट्ठा हुए। सभी ने बचने के लिए भगवान वरुणदेव से प्रार्थना की और पूजा पाठ, जप, व्रत आदि किए। इसके बाद उन्हें मछली पर सवार एक अद्भुत आकृति दिखाई दी। इसके बाद आकाशवाणी हुई कि, मानवता की रक्षा के लिए मैं 7 दिन बाद श्रीरतनराय के घर में माता देवकी की कोख से जन्म लूंगा।

इसके बाद वरुण देवता ने संत झूलेलाल के रूप में जन्म लिया और सिंधी लोगों को दमनकारी शासक से लोगों को बचाया। इसलिए विशेष दिन पर भगवान झूलेलाल की पूजा की जाती है। जब इस बात का पता मिरखशाह को चला तो उसने इस बालक के मारने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाया। बड़े होकर इस युवक ने एक वीर सेना तैयार की और मिरखशाह को हरा दिया। ऐसा कहा जाता है कि, झूलेलाल की शरण में आने के कारण मिरखशाह बच गया। वहीं भगवान झूलेलाल संवत् 1020 भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्तर्धान हो गए। तभी से उनकी स्मृति में ये पर्व मनाया जाने लगा।

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