छत्तीसगढ़शिक्षा जगत

महासमुन्द के नवागंतुक डीईओ विजय लहरें की ताबड़तोड़ कार्यवाही आते ही उतरी प्रधान पाठक की कुर्सी

सालों से शिक्षा विभाग को गुमराह कर रखा था प्रधान पाठक दिनेश प्रधान

“झूठ की तर्ज”पर बना प्रधान पाठक..!
“सच की तर्ज” पर खिसकी कुर्सी प्रधान पाठक की…!!

रिपोर्टर मयंक गुप्ता
महासमुन्द / जिला शिक्षा विभाग के गलियारों में सनसनी मच गई है। जिस कुर्सी की चमक से दिनेश कुमार प्रधान की किस्मत चमकी थी, वही अब उनके पतन का कारण बन गई है। एक फर्जी आदेश, एक झूठा दावा और एक शिक्षक का छल — अब उसी के गले की फांस बन चुका है।

14 जून 2025 की तारीख, जिला शिक्षा कार्यालय महासमुन्द के इतिहास में उस काले दिन की तरह दर्ज हो चुकी है, जब ‘शिक्षा’ जैसे पवित्र क्षेत्र को छल और धोखे से लज्जित किया गया। उस दिन एक ऐसा आदेश जारी हुआ जिसने यह सिद्ध कर दिया कि अगर पद पाने की सीढ़ियाँ फर्जीवाड़े की नींव पर रखी जाएं, तो वे बहुत देर तक टिक नहीं सकतीं।

पर्दाफाश की कहानी: एक पदोन्नति, दो आदेश और एक बड़ा झूठ!

शिक्षक दिनेश कुमार प्रधान, जो मूलतः विकासखण्ड बसना के सहायक शिक्षक (पंचायत) के पद पर दिनांक 18 जुलाई 2007 को नियुक्त हुए थे, ने अपने व्यक्तिगत चिकित्सा कारणों के आधार पर 02 सितंबर 2010 को विकासखण्ड पिथौरा में स्थानांतरण लिया।

यहाँ तक तो सब ठीक था। लेकिन तूफान तो तब उठा, जब उन्होंने पिथौरा विकासखण्ड में कार्यभार ग्रहण करने के बावजूद अपनी वरिष्ठता 2007 की बताई, यानी पहले विकासखण्ड की वरिष्ठता को ही अपने साथ खींच लाए।

अब यहीं से शुरू होती है खेल की असली पटकथा।

‘डबल रोल’ जैसा आदेश! — प्रशासनिक आधार या चिकित्सा कारण?
जब श्री प्रधान ने प्राथमिक शाला खैरखुटा में प्रधान पाठक की कुर्सी पर आसीन होने के लिये आवेदन किया, तो उन्होंने यह दावा किया कि उनका स्थानांतरण “प्रशासनिक आधार” पर हुआ है, न कि स्वयं के व्यय पर। लेकिन उसी आदेश का दूसरा रूप सामने आया जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि स्थानांतरण चिकित्सा कारण से स्वयं के खर्च पर हुआ है।

यानी एक ही क्रमांक वाला आदेश दो अलग-अलग मकसद के साथ प्रस्तुत किया गया। एक असली, एक नकली।

जैसे ही इस गड़बड़ी की भनक जिला शिक्षा कार्यालय को लगी, तत्काल संभागीय संयुक्त संचालक रायपुर के माध्यम से जांच समिति गठित की गई। जांच में जो सामने आया, वह चौंकाने वाला था — प्रशासनिक आधार पर प्रस्तुत आदेश पूर्णतः फर्जी था।

जांच में निकला चौंकाने वाला सच

फर्जी आदेश की सत्यता जांचने के लिए उस समय के स्थानांतरण आदेश जारीकर्ता, तत्कालीन जनपद पंचायत बसना के CEO (अब सेवानिवृत्त) से प्रमाण मांगा गया। जवाब आया —

“प्रशासनिक आधार पर जारी आदेश में मेरे हस्ताक्षर नहीं हैं, यह फर्जी है। वैध आदेश वही है जो चिकित्सा कारण से स्वयं के व्यय पर जारी किया गया था।”

यानी दिनेश कुमार प्रधान ने जानबूझकर फर्जी दस्तावेज पेश कर पदोन्नति हासिल की।

शिक्षक दिनेश प्रधान का ‘गिरा सिंहासन’, टूटी पदोन्नति की डोर!

जैसे ही यह धांधली सामने आई, दिनेश कुमार को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया। लेकिन उनके लिखित जवाब को “पूर्णतः असंतोषजनक” मानते हुए जिला शिक्षा अधिकारी महासमुन्द ने 14 अक्टूबर 2022 को दी गई पदोन्नति तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी।

अब दिनेश कुमार प्रधान, जो कभी प्रधान पाठक की कुर्सी पर बैठकर स्कूल की कमान संभाल रहे थे, फिर से अपने मूल पद सहायक शिक्षक (एल.बी.) पर वापस भेज दिये गये हैं।

कुर्सी की हवस और शिक्षा व्यवस्था पर कलंक

यह प्रकरण केवल दिनेश कुमार प्रधान की कहानी नहीं है। यह पूरे शिक्षा तंत्र में जड़े भ्रष्टाचार, लालच और फर्जीवाड़े की दीमक को उजागर करता है।

एक शिक्षक, जो बच्चों को सच्चाई और नैतिकता का पाठ पढ़ाता है, जब स्वयं फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेकर पदोन्नति हासिल करता है, तो यह पूरे तंत्र को अपवित्र करता है।

विकासखण्ड पिथौरा के अन्य शिक्षकों में गहरा आक्रोश व्याप्त है। उनका कहना है कि —

“यदि फर्जी आदेश से कोई आगे बढ़ेगा, तो मेहनत करने वाले शिक्षक कहां जाएंगे?”

शिक्षक दिनेश प्रधान का अब क्या होगा आगे?

सूत्रों के अनुसार, यह केवल शुरुआत है। जांच में जो अन्य नाम सामने आए हैं, उनके खिलाफ भी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
शिक्षा विभाग ने संकेत दिए हैं कि ऐसे मामलों में शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई जाएगी।

समाज का सवाल: क्या अब शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी?

दिनेश कुमार प्रधान जैसे मामलों से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षक केवल किताबों से नहीं, अपने आचरण से भी विद्यार्थियों को शिक्षा देते हैं। जब शिक्षक ही पथभ्रष्ट हो जाएं, तो समाज की दिशा भी डगमगाती है।

अब देखना यह है कि क्या इस नाटक का अंत यहीं होता है या और भी अध्याय सामने आएंगे?

“सत्य की नींव पर बनी पदोन्नति ही स्थायी होती है,
झूठ की ईंटें देर-सवेर ढह ही जाती हैं!”

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