छत्तीसगढ़

जनपद पंचायत महासमुंद में 39 लाख का गड़बड़ झाला ...!

जांच के नाम से अधिकारियों के पसीने से आने लगी बदबू….?

रिपोर्टर मयंक गुप्ता
महासमुंद / आप यकीन करें या न करें किन्तु यह बात सौ टका सच हैं.विश्व में फैले वैश्विक महामारी ने सबको झकझोर कर रख दिया था. किन्तु कोरोना महामारी की आड़ में लाखों लोगों ने अपने परिवार को तड़पकर मरते हुये देखे और खोये हैं, कोरोना महामारी किसी के लिये वरदान तो किसी के लिये अभिशाप साबित हुआ जिसकी बहुतों ने चाहे छोटे व्यापारी हो या बड़ा व्यापारी लुत्फ़ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़े और इंसानियत की सारे हदे पार कर दिया गया . जिसकी औकात दुपहिया लेने की नहीं थी. वो आज चार पाहियों व बड़ी बिल्डिंग के स्वामित्व भी बन गये. इसी महामारी की आड़ लेकर ऐसा ही एक घटना छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जनपद पंचायत व जिला पंचायत जिला का सामने आया. ज्ञात हो कि, महासमुन्द जिला के जनपद पंचायत महासमुन्द में कोविड काल के समय केंद्र सरकार द्वारा 15वे वित्त मद आयोग की राशि जिले के समस्त जनपद पंचायतों में आई थी. जिसको सभी ग्राम पंचायतों में कोरोना से पीड़ित व्यक्तियों के उपयोग हेतु सेनेटाइजर मास्क,क्रय कर पंचायतों पहुँचाना था. बात करें महासमुंद जनपद पंचायत की तों कोविड सम्बन्धी सामग्री तो पहुँची और क्रय भी किया गया किन्तु फर्जी बिल व्हाऊचर बनाकर लेकिन किसने देखा सामग्री क्रय हुई और कब पहुँची ग्राम पंचायतों में क्योंकि सबको तो अपनी और अपनो की जान की पड़ी थी! क्योंकि महामारी ऐसी थी. जिसका भय मात्र से तो नाम सुनते ही रूह कांप जाती थी ! खैर भगवान ना करे ऐसे दिन हमारे प्रदेशवासियों को दोबारा देखने को मिले.
हम बात जनपद पंचायत महासमुंद की कर रहे है. जहा पर 15वे वित्त मद आयोग की राशि 39 लाख रुपये का है. क्या उस मामले में चल रही जांच को दबाने का प्रयास किया जा रहा है..? क्या वह जांच फिर दब जायेगी..? क्योंकि यह पहली ऐसी जांच है जो 2 वर्षो से कछुवे की चाल में चल रही है. कभी जांच अधिकारी सेवा निवृत हो जाते है, तो कभी जांच अधिकारी का ट्रांसफर कर दिया जाता है..? क्या उसमे भी जिला पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी एस.आलोक की संलिप्तता होना लाजमी है..? 39 लाख रुपयों की हेराफेरी को गंभीरता से नही लेना अपने आप में प्रश्न वाचक चिन्ह है..? मिडिया की टीम द्वारा कई बार जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी से संपर्क साधने का प्रयास किया गया कि, किन्तु जिला सीईओ द्वारा क्या कार्यवाही की गई.किन्तु सीईओ द्वारा मामले को टालमटोल कर कफन-दफ़न कर निपटारा हेतु हमेशा दौरे का हवाला देते रहे और मिले तो अपने चेम्बर से बाहर आकर जवाब देते है कि, मैं उसमे क्या कर सकता हूँ.
जनपद पंचायत करेगा या जिला के कलेक्टर करेंगे उसमे मैं क्या कर सकता हूं… ? ऐसा उनके द्वारा जवाब दिया जाता है. शिकायतकर्ता ने इस मामले में जों शिकायत की हैं उसमे साफ शब्दो में लिखा हैं. जों कर्मचारी इस मामले में संलिप्त है. वह कर्मचारी जिला पंचायत कार्यालय का ही है. उस कर्मचारी को जनपद पंचायत महासमुन्द में बैठा कर रखे हुये है.शिकायतकर्ता द्वारा कुछ दिन पहले जनपद पंचायत मुख्य कार्यपालन अधिकारी मिशा कोसले द्वारा उस मामले में चर्चा किया गया तो उनके बताया गया मैंने अपना काम कर दिया हैं. जांच कर के जिला पंचायत कार्यालय में जमा कर दिया है उनके द्वारा निष्पक्ष जांच की गई है.अब संशय की स्थिति यह बन रही है कि, जांच होने के बाद अब कार्यवाही लंबित क्यों हैं. इस मामले में 39 लाख रुपयों का झोलझाल जितनी तेजी से हुई थी उतनी तेजी से जांच टीम द्वारा जांच करने में पसीने क्यों छूट रहे हैं. लेकिन दोषियों के ऊपर कार्यवाही को क्यों रोक कर रखी गई है..?
केंद्र सरकार के पैसे को गबन किया गया जबकि राज्य में उनकी सरकार नही थी अब तो उनकी सरकार है फिर भी जांच को संज्ञान में नही लिया जा रहा है. अगर ऐसा होता रहा तो भ्रस्टाचारियो के हौसले दिन ब दिन बुलंद होते रहेंगे । शिकायतकर्ता द्वारा कहा गया हैं कि,अभी इस मामले के बाद एक और मामला जिला पंचायत में पदस्थ कर्मचारी का सामने लाने वाला हूँ…? जिसके द्वारा पूरे क्रय-विक्रय के नियमो की धज्जियां उड़ा दिया गया है ।

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